बाबासाहेब अंबेडकर: सामाजिक समता के पुरोधा को श्रद्धांजलि
हर वर्ष 14 अप्रैल को भारत एक महान विचारक, संविधान निर्माता और सामाजिक न्याय के प्रबल पक्षधर डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाता है। यह दिन केवल एक महापुरुष के जन्म का उत्सव नहीं है, बल्कि यह उस चेतना का स्मरण है, जिसने करोड़ों भारतीयों को अधिकार, सम्मान और स्वाभिमान का एहसास कराया।
एक युग निर्माता का जीवन
बाबासाहेब का जीवन अभावों, भेदभावों और चुनौतियों से भरा था, लेकिन उन्होंने हर कठिनाई को अपनी शक्ति में बदला। वे न केवल भारत के पहले कानून मंत्री बने, बल्कि भारतीय संविधान के निर्माता के रूप में उन्होंने एक ऐसा दस्तावेज़ तैयार किया जो समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के मूल्यों पर आधारित है।
उनकी शिक्षा के प्रति लगन, समाज के प्रति समर्पण और न्याय के लिए अडिग संघर्ष ने उन्हें एक युगपुरुष बना दिया। कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से शिक्षा प्राप्त कर उन्होंने दिखा दिया कि ज्ञान के बल पर सामाजिक बेड़ियों को तोड़ा जा सकता है।
आज के भारत में बाबासाहेब की प्रासंगिकता
आज जब भारत आत्मनिर्भर और विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, तब बाबासाहेब के विचार और आदर्श पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं। उन्होंने जो सपना देखा था—एक ऐसा भारत जहां हर व्यक्ति को समान अवसर, सम्मान और न्याय मिले—वह आज हमारी नीतियों, योजनाओं और सोच का मार्गदर्शन कर रहा है।
सामाजिक न्याय, शिक्षा का अधिकार, महिलाओं को समान अधिकार, और वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने की कोशिशें, ये सभी उस दृष्टिकोण का हिस्सा हैं जो बाबासाहेब ने हमें विरासत में दिया।
हमारी जिम्मेदारी
बाबासाहेब ने कहा था: "शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो।" यह केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है। आज हमें आवश्यकता है कि हम इन शब्दों को केवल याद न करें, बल्कि अपने जीवन में उतारें। जब तक समाज में असमानता, अन्याय और भेदभाव की कोई भी रेखा मौजूद है, तब तक बाबासाहेब की शिक्षाएं हमें प्रेरित करती रहेंगी।
नमन और संकल्प
इस पावन अवसर पर आइए हम सभी भारतवासी एकजुट होकर बाबासाहेब को नमन करें और संकल्प लें कि उनके दिखाए मार्ग पर चलते हुए हम एक ऐसे भारत के निर्माण में योगदान देंगे, जहां हर व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने का अधिकार प्राप्त हो।
जय भीम!
बाबासाहेब अमर रहें।
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